------------------ ज़िन्दगी ज़िंदा दिल जिया करते है , मुर्दा क्या खाक जिया करते है --------------
जूनून न हो इंसान में तो वो भीड़ में कही अपने आप को खो देता है। और किसी भी जूनून के पीछे सही जानकारी और सही तैयारी का होना बहुत जरूरी है नहीं हो वह जानलेवा बन जाता है। ऐसे ही यह कहानी है मेरी सच पास यात्रा की।
अभी 23 दिन ही हुए थे हिमालय -गंगोत्री से केदारताल की यात्रा को पुरे किए हुए और ये यात्रा भी हमेशा की तरह अननं फांनन में तय हुई थी। तक़रीबन 50 दिन पहले एक बार सच पास जाने का जिक्र हुआ था दोस्तों के साथ लेकिन कुछ कारण वश ना जा पाया तो केदारताल हो आये। अब सच पास के बारे में निरंतर जानकारी थी और यह भी पता था की अक्टूबर महीने के आखिर में भी यहाँ पर जाना एक असंभव सा काम है और आधिकारिक तौर पर अक्टूबर में रोड भी बंद हो जाती है। लेकिन न जाने बार बार क्यों सच पास का जिक्र होता रहता था हम दोस्तों की किसमत में वहा का बुलावा था इसीलिए। सच पास का कीड़ा इस कदर काठ गया दिमाग में की 28 नवम्बर को सब जानकारी निकल डाली सच पास की मौजूदा स्तिथि के बारे में और फिर मेने फ़ोन किया मेरे व्हाट्स एप्प ग्रुप के दोस्त राकेश बिश्नोई को और हेल्लो बोलने के बाद सीधा ये ही पुछा " पंगा ले ले क्या ", इतना कहना था की राकेश जोर जोर से हँसने लगा और बोला "सन्नी भाई , जब सोच लिया है तो देखि जाएगी" बस फिर क्या था मेने कहा "तैयारी करते है परसो निकल लेते है " राकेश ने पुछा साथ में कौन कौन है , लेकिन में कभी किसी को व्यक्तिगत तरीके से नहीं पूछता ,अपनी सोशल लिंक्स पर लिख देता हु अपने ट्रिप के बारे में , अगर कोई चलता है तो ठीक नहीं तो कोई फर्क कभी नहीं पड़ता , लेकिन अगर दोस्त साथ होते है तो यात्रा और ज्यादा मज़ेदार हो जाती है। अपने ग्रुप से धीरेन्द्र भी साथ चलने को तैयार हो गए जो हापुड़(उ.प) से है।
2 दिन में मेने अपने सभी ग्रुप्स में सच पास दिसम्बर में करने के लिए जानकारी के लिए डाल दिया। बड़ी ही नकरात्मक प्रतिक्रिया मिली कुछ ने अच्छे सुझाव भी दिए पर किसी भी ग्रुप में कोई बन्दा नहीं मिला जिसने कहा हो की पास किया है दिसम्बर में या किसी को करते देखा हो । खैर में अपने 12 साल से काफी जगह घूम हु और इसमें केवल 3 बार ही बुलेट मोटरसाइकिल से गया हु और मेने अपनी पहले बुलेट 2003 में खऱीदी थी लेकिन 8 साल पहले उसे मोडिफाइ करवाई और गेराज में खड़ी कर दी , शायद 7-8 साल में 350 km चलाइ है। इसीलिए में बुधवार 1 दिसम्बर को अपने दोस्त मनीष के घर ग्रेटर नॉएडा से थंडरबर्ड मोटरसाइकिल ले आया और 1 दिसम्बर की ही रात को यात्रा आरम्भ करने का तय हुआ और कुछ जरुरी सामान जैसे की आइस तोड़ने के लिए हतोड़े , एक मजबूत रस्सी,पंक्चर किट, पंप,आइस चैन टायर के लिए ,स्पार्क प्लग ,स्लीपिंग बैग ,टेंट,और खाने का सामान ले लिए ।वैसे आज ही मेरी अच्छी खासी घिसाई हो गयी, पहले मेरठ से ग्रेटर नॉएडा फिर गुडगाँव और फिर वापस मेरठ यानि तक़रीबन 250 km की बाइक यात्रा हो गयी।
सुबह को धीरेन्द्र 3:30 बजे घर पर आया और दोनों ने सामान बाइक पर बांधे। स्लीपिंग बैग्स धीरेन्द्र की बाइक पर लाधे और अपना सारा सामान एक छोटे से लैपटॉप वाले बैग में किया और अपनी बाइक पर बांध लिया। सही 4 बजे हम दोनों चल दिए और राकेश अपने एक दोस्त के साथ हमे डलहौज़ी मिलने वाला था। मेरठ से करनाल रोड पर सुबह जबरदस्त कोहरा मिला लेकिन हम सही स्पीड से सावधानी से लेन बदलने वाली लाइन पर चलाते हुए सही 7:15 बजे करनाल पहुँच गए (108 km ). पहला ब्रेक लिया पेट्रोल पंप पर और फिर वापस से सही स्पीड से चलते हुए बिना रुके चंडीगढ़ से पहले पेट्रोल पंप पर रुके जहा पर हवा डलवाई और धीरेन्द्र ने दो गिलास संतरा (माल्टा थी ) का जूस आर्डर कर दिया। बड़ा खट्टा था और जालिम ने 80 रूपये का गिलास दिया , सो अगर कोई भाई पिए ओ पहले पूछ लेना की खट्टा तो नहीं नहीं तो दोनों तरफ से लुटे जाओगे। दोनों बाइक हम लगभग 90 -110 की स्पीड के बीच में ही चला रहे थे। थोड़ी तेज़ थी लेकिन कोई खतरा नहीं था NH 1 के हिसाब से। धीरेन्द्र की बाइक में साइड के शीशे नहीं थे जिससे मुझे काफी जगह चिंता होती थी क्योकि हादसे कह कर नहीं होते। हाईवे पर आप को क्या पता की जब आप किसी वाहन को ओवरटेक कर रहे होते हो तो पीछे से कौन कितनी स्पीड में आ रहा होता है " यहाँ सभी अपने को जहाज़ी मानते है , यह हिंदुस्तान है मेरी जान"
खैर दोनों साथ चलते रहे सावधानी से। बीच बीच में राकेश से भी बात होती रहती थी वह हमारे से 1:30 घंटा जल्दी पहुचने वाला था। अब हमे भूख लग रही थी और हम पठानकोट पार कर लिया और और लगभग 2 बजे होंगे। . हमारा लक्ष्य 5-6 बजे का बैरागढ़ पहुचने का था इसिलए हमने खाने को ज्यादा तवज्जु नहीं दी और चलते रहे बीच में चम्बा के लिए निशान बना हुआ है हमने वह गलत मोड़ -मोड़ लिया और कच्चे पक्के रस्ते से होते हुए वापस डलहौज़ी वाले रोड पर चढ़ गए और लगभग 1 घंटा बर्बाद हो गया और शरीर टूटा सो अलग । तो जो भी भाई चम्बा या डलहौसी जाये इस मोड़ का ध्यान रखे और यहाँ पर एक मंदिर भी है जिसकी ही दिवार पर चम्बा जाने का निशान बना हुआ है उलटे हाथ की तरफ। शायद दुनेरा निकले उस रोड से मैन रोड पर और फिर दुनेरा पर पेट ने आगे जाने से माना कर दिया और यहाँ 8 पैकेट जूस और गरमा गरम पकोड़ी खायी, मज़ा आ गया सही में बहुत ही जबरदस्त चटनी थी।
राकेश भाई को काफी देर हो गयी थी इंतज़ार करते हुए और उनके शब्द फ़ोन पर इस बात को जाहिर कर रहे थे , लेकिन अभी एक और बार गलत मोड़ ले लिया डलहौज़ी से 6km पहले हम को सीधा चम्बा की तरफ जाना था और हम गूगल देवता के दिखाए रास्ते पर दोबारा भरोसा कर बैठे और डलहौज़ी की तरफ मोड़ लिया वह तो 3km बाद ही राकेश का फ़ोन आ गया और हम वापसी चम्बा की तरफ चल दिए. आखिर हम बनीखेत पर राकेश से मिले और वह अपने दोस्त योगी के साथ हमारा इंतज़ार कर रहे थे। योगी भाई एक गजब के शान्त स्वभाव के और हसमुख बन्दे है , कम ही इंसान है ऐसे दुनिया में।
हम लगभग 15-20 मिनिट में चमेरा बांध पर पहुँच गए , बहुत ही गजब लगता है लगता है बांध के साथ साथ कार/बाइक चलने में। यहाँ पर चेक पोस्ट है जिसने हमसे हमारा प्रोग्राम पूछा और हमने बताया की हम बैरागढ़ जा रहे है और उसने रजिस्टर पर हमारी जानकारी लिखने के बाद जाने दिया। शाम के 5:00 बजे हम ने चमेरा बांध से आगे बढ़ना शुरू किया और अभी काफी रास्ता तय करना था। तक़रीबन 2 से 2:30 घन्टे का रास्ता और बचा था अंधेरा में काम से काम चलना पड़े इसके हिसाब से हम कही भी नहीं रुके और बीच में कोई भी जगह जहा से दो रास्ते निकलते थे किसी स्थानीय निवासी से बैरागढ़ के लिए पूछ कर आगे बढ़ते रहते।
खैर श्याम 7 बजे हम बैरागढ़ पहुँच गए और होटल ढूंढा और दो कमरे लिए और सामान रखने के बाद खाने के लिए तुरंत ढाबा वाले ढूंढने लगे क्योकि जो वहा सबसे अच्छा होटल था उसने मना कर दिया की "खाने को कुछ नहीं क्योकि इस समय कोई भी टूरिस्ट नहीं आते और किसी और पर भी नहीं मिलेगा शायद" ........ यार रहम कर सुबह से कुछ नहीं खाया। ....... इसीलिए बिना देर किए दो और ढाबे है बैरागढ़ में उनके पास पहुँच गए। किस्मत , दोनों ने मना कर दिया की भाई कुछ नहीं है बस दाल बची है वो भी एक प्लेट मिलेगी। ....... भगवान कहा हो मेरा पेट चिल्ला रहा है कुछ तो सुनो। इतने में योगी भाई को देखता हु तो हाथ में एक पन्नी में सिल्वर फॉयल में कुछ लेकर आ रहे ढ़ाबे वाले की तरफ मेने बताया की भाई बस एक प्लेट दाल है पुरे बैरागढ़ में हमारे लिए , वो खतरनाक वाली बच्चो वाली शरारती मुस्कराहट के साथ बोले "राकेश ने बोला था आलू के पराठे लाने के लिए सभी के लिए 3-3 पराठे है और दही भी " . शब्दो में नहीं बता सकता की कितना सकून मिला सुन कर।
मज़ा आ गया आलू परांठा और दही में। सुबह का प्लान बना की कल कोशिश होगी किल्लाड़ से अगली जगह जहा भी रुक सकते है वहा तक चलेंगे, क्योकि बैरागढ़ से 70km था किल्लाड़ बस । इसीलिए अभी ही चेक पोस्ट पर पर जाकर सच पास की जानकारी ली। पुलिस वाले ने पहले तो मना कर दिया की बहुत ज्यादा रिस्क है बाइक पर , सड़क पर बर्फ जमी हुई है हर तरफ और खड़ी चढाई है और उत्तराई भी इसलिए परमिशन नहीं देगा। फिर हमने उन्हें हमारी तैयारी और सामान के बारे में बताया और अपने पुरानी यात्रा के फोटो दिखाए जिससे उन्हें यकींन हुआ की नौसिखिये नहीं है और पूरी सुरक्षा का सामान है। भगवान की दया हुई की उनको समझ आयी और उन्होंने हमारी जानकारी रात को ही अपने रजिस्टर में लिख ली जिससे सुबह का चक्कर ना रहे। अब हम भी संतुष्ट होकर अपने अपने कमरे में सोने के लिए वापस हो लिए। लेकिन कितने भी थके हुए हो इतनी जल्दी नींद नहीं आती , योगी और राकेश दोनों कमरे में आ गए और फिर क्या ताश का खेल शुरू। हम सभी को ज्यादा खेल नहीं आते थे ताश के लेकिन फिर भी भी ताश का कोई भी खेल हो ,सभी मजेदार होते है. ........ कब 11:30 बज गए पता ही नहीं लगा। योगी भाई हारे और कल जितने के इरादे का ऐलान करते हुए वापस अपने कमरे की तरफ चल दिए। अपने बिस्तर पर लम्बे हो कर सो गए। ........
हमे क्या पता था की चैन की नींद के बाद कल पूरा दिन ज़िन्दगी और मौत की जद्दो-जहत में पूरा पूरा मज़ा आने वाला है
जूनून न हो इंसान में तो वो भीड़ में कही अपने आप को खो देता है। और किसी भी जूनून के पीछे सही जानकारी और सही तैयारी का होना बहुत जरूरी है नहीं हो वह जानलेवा बन जाता है। ऐसे ही यह कहानी है मेरी सच पास यात्रा की।
शानदार झरने साथ। .सच पास से पहले |
2 दिन में मेने अपने सभी ग्रुप्स में सच पास दिसम्बर में करने के लिए जानकारी के लिए डाल दिया। बड़ी ही नकरात्मक प्रतिक्रिया मिली कुछ ने अच्छे सुझाव भी दिए पर किसी भी ग्रुप में कोई बन्दा नहीं मिला जिसने कहा हो की पास किया है दिसम्बर में या किसी को करते देखा हो । खैर में अपने 12 साल से काफी जगह घूम हु और इसमें केवल 3 बार ही बुलेट मोटरसाइकिल से गया हु और मेने अपनी पहले बुलेट 2003 में खऱीदी थी लेकिन 8 साल पहले उसे मोडिफाइ करवाई और गेराज में खड़ी कर दी , शायद 7-8 साल में 350 km चलाइ है। इसीलिए में बुधवार 1 दिसम्बर को अपने दोस्त मनीष के घर ग्रेटर नॉएडा से थंडरबर्ड मोटरसाइकिल ले आया और 1 दिसम्बर की ही रात को यात्रा आरम्भ करने का तय हुआ और कुछ जरुरी सामान जैसे की आइस तोड़ने के लिए हतोड़े , एक मजबूत रस्सी,पंक्चर किट, पंप,आइस चैन टायर के लिए ,स्पार्क प्लग ,स्लीपिंग बैग ,टेंट,और खाने का सामान ले लिए ।वैसे आज ही मेरी अच्छी खासी घिसाई हो गयी, पहले मेरठ से ग्रेटर नॉएडा फिर गुडगाँव और फिर वापस मेरठ यानि तक़रीबन 250 km की बाइक यात्रा हो गयी।
सुबह को धीरेन्द्र 3:30 बजे घर पर आया और दोनों ने सामान बाइक पर बांधे। स्लीपिंग बैग्स धीरेन्द्र की बाइक पर लाधे और अपना सारा सामान एक छोटे से लैपटॉप वाले बैग में किया और अपनी बाइक पर बांध लिया। सही 4 बजे हम दोनों चल दिए और राकेश अपने एक दोस्त के साथ हमे डलहौज़ी मिलने वाला था। मेरठ से करनाल रोड पर सुबह जबरदस्त कोहरा मिला लेकिन हम सही स्पीड से सावधानी से लेन बदलने वाली लाइन पर चलाते हुए सही 7:15 बजे करनाल पहुँच गए (108 km ). पहला ब्रेक लिया पेट्रोल पंप पर और फिर वापस से सही स्पीड से चलते हुए बिना रुके चंडीगढ़ से पहले पेट्रोल पंप पर रुके जहा पर हवा डलवाई और धीरेन्द्र ने दो गिलास संतरा (माल्टा थी ) का जूस आर्डर कर दिया। बड़ा खट्टा था और जालिम ने 80 रूपये का गिलास दिया , सो अगर कोई भाई पिए ओ पहले पूछ लेना की खट्टा तो नहीं नहीं तो दोनों तरफ से लुटे जाओगे। दोनों बाइक हम लगभग 90 -110 की स्पीड के बीच में ही चला रहे थे। थोड़ी तेज़ थी लेकिन कोई खतरा नहीं था NH 1 के हिसाब से। धीरेन्द्र की बाइक में साइड के शीशे नहीं थे जिससे मुझे काफी जगह चिंता होती थी क्योकि हादसे कह कर नहीं होते। हाईवे पर आप को क्या पता की जब आप किसी वाहन को ओवरटेक कर रहे होते हो तो पीछे से कौन कितनी स्पीड में आ रहा होता है " यहाँ सभी अपने को जहाज़ी मानते है , यह हिंदुस्तान है मेरी जान"
चलते रहना |
खैर दोनों साथ चलते रहे सावधानी से। बीच बीच में राकेश से भी बात होती रहती थी वह हमारे से 1:30 घंटा जल्दी पहुचने वाला था। अब हमे भूख लग रही थी और हम पठानकोट पार कर लिया और और लगभग 2 बजे होंगे। . हमारा लक्ष्य 5-6 बजे का बैरागढ़ पहुचने का था इसिलए हमने खाने को ज्यादा तवज्जु नहीं दी और चलते रहे बीच में चम्बा के लिए निशान बना हुआ है हमने वह गलत मोड़ -मोड़ लिया और कच्चे पक्के रस्ते से होते हुए वापस डलहौज़ी वाले रोड पर चढ़ गए और लगभग 1 घंटा बर्बाद हो गया और शरीर टूटा सो अलग । तो जो भी भाई चम्बा या डलहौसी जाये इस मोड़ का ध्यान रखे और यहाँ पर एक मंदिर भी है जिसकी ही दिवार पर चम्बा जाने का निशान बना हुआ है उलटे हाथ की तरफ। शायद दुनेरा निकले उस रोड से मैन रोड पर और फिर दुनेरा पर पेट ने आगे जाने से माना कर दिया और यहाँ 8 पैकेट जूस और गरमा गरम पकोड़ी खायी, मज़ा आ गया सही में बहुत ही जबरदस्त चटनी थी।
ये पुल जोड़ता है लिंक रोड को वापस डलहौज़ी हाईवे से |
धीरेन्द्र ,में और राकेश |
चमेरा डैम के साथ बाइक चलाने का अलग ही शानदार अनुभव रहा |
मज़ा आ गया आलू परांठा और दही में। सुबह का प्लान बना की कल कोशिश होगी किल्लाड़ से अगली जगह जहा भी रुक सकते है वहा तक चलेंगे, क्योकि बैरागढ़ से 70km था किल्लाड़ बस । इसीलिए अभी ही चेक पोस्ट पर पर जाकर सच पास की जानकारी ली। पुलिस वाले ने पहले तो मना कर दिया की बहुत ज्यादा रिस्क है बाइक पर , सड़क पर बर्फ जमी हुई है हर तरफ और खड़ी चढाई है और उत्तराई भी इसलिए परमिशन नहीं देगा। फिर हमने उन्हें हमारी तैयारी और सामान के बारे में बताया और अपने पुरानी यात्रा के फोटो दिखाए जिससे उन्हें यकींन हुआ की नौसिखिये नहीं है और पूरी सुरक्षा का सामान है। भगवान की दया हुई की उनको समझ आयी और उन्होंने हमारी जानकारी रात को ही अपने रजिस्टर में लिख ली जिससे सुबह का चक्कर ना रहे। अब हम भी संतुष्ट होकर अपने अपने कमरे में सोने के लिए वापस हो लिए। लेकिन कितने भी थके हुए हो इतनी जल्दी नींद नहीं आती , योगी और राकेश दोनों कमरे में आ गए और फिर क्या ताश का खेल शुरू। हम सभी को ज्यादा खेल नहीं आते थे ताश के लेकिन फिर भी भी ताश का कोई भी खेल हो ,सभी मजेदार होते है. ........ कब 11:30 बज गए पता ही नहीं लगा। योगी भाई हारे और कल जितने के इरादे का ऐलान करते हुए वापस अपने कमरे की तरफ चल दिए। अपने बिस्तर पर लम्बे हो कर सो गए। ........
हमे क्या पता था की चैन की नींद के बाद कल पूरा दिन ज़िन्दगी और मौत की जद्दो-जहत में पूरा पूरा मज़ा आने वाला है
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शानदार,ज़बरदस्त घुमक्कड़ी ज़िंदाबाद 🙏
ReplyDeleteshukriya Naresh Bhai
Deleteसनी भाई मेरे पास शब्द नहीं है कुछ भी कहने को बस इतना ही कहूंगा
ReplyDeleteयारा तुस्सी तो कमाल कर दिया चाक दे फड्डे
बहुत बहुत शुक्रिया लोकिंद्र भाई इतना सरहाने के लिए। मुझे ख़ुशी हुई की आपको पसंद आया मेरा ब्लॉग
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteFirst time I came to your blog, adventuring
ReplyDeleteThanks Harshita for giving your valuable time to read my blog. Hope you will like the other parts also.
Deleteक्या इंसान हो यार तुम..... दिसंबर में साच पास....
ReplyDeleteItne chote se comment me bhi tarif ki apne. Shukriya.
Deleteशीशे की चिंता, गर्म गर्म पकौडे, खटा जूस,
ReplyDeleteभूख के सामने राकेश भाई की हालत रोमांच बढाती है। आपका भी वही हाल है, मजा आया, लेख पढ कर,
साचपास में हमारे साथ बहुत बुरा हुआ था। साथी की बाइक बह गयी थी।
Sandeep bhai,Sach pass hai hi khatarnak jagah. Jalim jitne insan gaye honge koi na koi khatarnak ghatna hui hi hogi.
DeleteWiase apko blog pasand aya.. Matlab pass
Shandar jaandar jabarjast
ReplyDeleteshukriya naresh bhai
Deleteजबरदस्त भाई जी
ReplyDeleteShukriya Anil
Deleteगजब का हौंसला ! बढ़िया यात्रा विवरण
ReplyDeleteHosla badhane ke liye shukriya mukesh bhai
Deleteगजब का हौंसला ! बढ़िया यात्रा विवरण
ReplyDeleteShukriya mukesh Bhai
Deleteगज्जब ।
ReplyDeleteShukriya Harendrer
Deleteगज़ब भाई, अगली पोस्ट जल्दी लिखना, ऐसी यात्राएं एक असली घुम्मकड़ ही कर सकता है।।
ReplyDeleteSangram ji itna sarhane ke liye bhaut abhar
DeleteGreat bhai maza aa gaya video dekh Kar........
ReplyDeleteThanks for appreciating, umeed hai next part bhi pasand ayega
DeleteHimate marda madede khuda
ReplyDeleteJi Bilkul sahi kaha
Deleteकमाल कर दित्ता। जिन्दाबाद। बाइक तो हमने भी खूब चलाई, पर बर्फ नहीं थी। 😃
ReplyDeleteShukriya Lalit ji, Waqt ki baat thi bas ki man hua aur upar wale ne saath diya aur yatra puri hui
Deleteसनी भाई .....बहुत बढ़िया ...बहुत ही बढ़िया सच पास की यात्रा
ReplyDeleteइस जगह का नाम जिसने भी रखा होगा सच ......पास .सच से सामना ,,,की कुदरत ने क्या क्या दिया है
बस कोई आप जैसा होना चाहिए जो उस पल को पूरा जी ले ,,,,,,,सभी लोगो को बधाई इस यात्रा के लिए
Bhaut-Bhaut Dhanyavad, Doctor Bhai ji apka, itna utsah badhane ke liye.
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