Friday, March 31, 2017

यात्रा वृतांत-होली पर चोपता / तुंगनाथ यात्रा ,हौसले और इरादों के साथ प्रकर्ति माता का आशीर्वाद ( भाग-2 )

   दुनिया में गलत बात / चीज़ नज़रअंदाज़ मत करो ,उसका पर्दाफाश करो। तुम तो बच जाओ, कही आपका कोई अपना न फँस जाये 

जय केदारा 
आज होली का दिन और मन में एक लगन थी की बाबा की इस पावन धरती पर ,पावनधाम के द्वार-चोपता तक तो जाया ही जाये। सुबह-सुबह जब कमरे से बाहर निकला तो सड़क,गाडी और पेड़ पर बर्फ की मोटी चादर नज़र आयी और शानदार जबरदस्त सुन्दर नज़ारा था। मक्कू बेंड से चोपता 12 किलोमीटर है और इतना लंबा रास्ता बर्फ पर चलना आसान नही जब उच्चाई भी बढ़ रही हो साथ में। खैर सुबह परांठे खाये और लगभग 8 बजे हम तीनो भाई सुजान सिंह के साथ चल दिए। 3 किलोमीटर बाद दुग्गल बिट्टा तक ही राहुल थक गया ,क्योकि भाई थोड़ा मोटा है और यहाँ पर हम ने फिर से मैगी और चाय पी, दरबान सिंह जी के पास। दरबान जी का होटल है सरकारी गेस्ट हाउस के बिलकुल सामने।  सुबह का टाइम था और दुग्गल बिट्टा से आगे ना कोई गया न ऊपर से कोई आया था इसीलिए दरबान सिंह जी बोले की बनियाकुंड के आगे जाना मुश्किल है। यहाँ से राहुल भाई वापस हो लिए, मै, नरेंद्र भैया और सुजान सिंह चल दिए बनिया कुंड की तरफ। कुछ किलोमीटर बाद मैने सूजन से कहा की सुजान हम छोटा रास्ता लेंगे जिससे हमारे 3 किलोमीटर कम हो जायेंगे क्योकि बनियाकुंड में हमें करना भी कुछ नहीं। सो बचा हुआ 9 किलोमीटर में से अब 6 किलोमीटर ही चलना था। 
शानदार नज़ारे के साथ सुहाना सफर 
ये छोटा रास्ता दरअसल पहले समय से तीर्थ यात्री  इस्तेमाल करते थे जो तुंगनाथ जी या बद्रीनाथ जाते थे। ये उसी रास्ते का एक छोटा सा हिस्सा है जिससे सीधा चोपता निकलते है। ये रास्ता काफी ज्यादा सुन्दर है और इस बार बर्फ में तो मजा ही आ गया। पेड़ो पर एक एक फुट बर्फ  और हर तरफ शानदार  मैदान शायद शब्दो में इतनी खूबसूरत प्रकर्ति का वर्णन न कर पाए। ताजी बर्फ में चलना थोड़ा कठिन होता ही है क्योकि ताकत ज्यादा लगती है लेकिन बस यही सकून होता है की फिसलने का डर नहीं होता। बनियाकुंड की कुछ झलक भी दिखती है रास्ते से। यहाँ पूरे रास्ते में चोपता तक  केवल एक ही पक्के निर्माण है, यानी की  धर्मशाला है, अंग्रेजो ने बनवाई थी तीर्थ यात्रियों के ठहरने के लिए। 
ये एक मात्र निर्माण है पुरे प्राचीन रास्ते में -- अंगेजो ने तीर्थ यात्रियों के लिए धर्मशाला बनवाई थी 
ये प्राचीन रास्ता दो पुल से होकर गुजरता है जो की अंगेजो ने बनवाये थे। दोनों तरफ बर्फ के अम्बार लगे हुए थे पूरे रास्ते। ज़िन्दगी में कभी नहीं सोचा था की कभी इस रास्ते दोबारा आऊँगा वो भी इतनी बर्फ में। पहली बार 2013 में ये रास्ता इस्तेमाल किया था जब भी बर्फ़बारी के कारण रोड बंद थी बनिया कुंड के 7 किलोमीटर पहले से और यही पर कुछ यादगार फोटो लिए थे। 
2013 का फोटो - 7 किलोमीटर का मील का पत्थर यही से छोटा रास्ता शुरू होता है -2013 में यही पर टेंट लगा कर सोया था सड़क पर 
ये प्राचीन रास्ता एक बार मुख्य रास्ते को होकर ऊपर की तरफ जाता है जो की क्रिस्टिन पीक नामक कैम्प के पास से चोपता निकलता है। होली का दिन और हर तरफ केवल बर्फ की सफेदी ही सफेदी। ऐसी होली किस इंसान को पसंद ना आये। जब क्रिस्टिन पीक के आगे चले तो लगभग 1 किलोमीटर बाद नागेन्द्र भाई को एक लोमड़ी दिखाई दी और इत्तेफाक से हम विडियो ही बना रहे थे। लोमड़ी बहुत तेज़ दौड़ रही थी लेकिन फिर भी उसका एक फोटो मेने अपने कैमरे से ले लिया और साथ साथ छोटा सा विडियो भी। ये पल याद आते ही मेरे को जनवरी का लेह लदाख में पांगोंग झील का सफर याद आ गया क्योकि वहा भी एक हिमालयन लोमड़ी बहुत देर तक गाड़ी के आगे आगे खूब तेज़ दौड़ती रही थी। 
लोमड़ी और  हिरण की तेज़ी बराबर ही लगी 
यात्रा पर जाये तो मर्यादा का ध्यान रखे , माँसाहार ,शराब और कोई गलत काम ना करे जिससे वहा की पवित्रता ख़राब हो। नहीं तो प्रकर्ति अपना हिसाब लेना जानती है।

खैर जल्द ही हम चोपता आ गए और सही रघुवीर भाई के होटल के साथ वाले रास्ते पर निकले और वो भी होटल के बाहर ही मिले और क्या उत्साह से मिले। गजब के इंसान है। यहाँ पर गरम दूध के साथ परांठे खाये और नागेन्द्र भाई से पूछा की आप चलोगे क्या तुंगनाथ जी की तरफ क्योकि दोनों की हालात ख़राब हो चुकी थी। बर्फ में रास्ता बनाना बहुत बड़ी चुनोती होती है। नागेन्द्र भाई ने मना कर दिया की तुम होआओ। मेरे को भी पता था की में तुंगनाथ जी के मंदिर या गणेश जी के मंदिर तक भी नहीं जा पाऊंगा लेकिन जितना भी सही जाना तो चाहिए। में और सुजान सिंह चल दिए चोपता से तुंगनाथ जी की तरफ, बर्फ़बारी शुरू हो चुकी थी । इतनी भयंकर बर्फ थी की 400 मीटर चलने में ही साँसे उखाड़ने लगी। भुजगाली बुग्याल तक विडियो और फोटो ली सुजान सिंह ने उसके बाद वो बोले की में और नहीं जा सकता। में आगे चल दिया की थोड़ा और आगे मनोज के ढाबे तक होकर आता हु जो भुजगाली से खड़ी चढाई पर 1 किलोमीटर पर है। 
तुंगनाथ जी के रास्ते का प्रवेश द्वार और बर्फ से लदा हुआ ढाबा 
हमसे पहले कोई नहीं गया था इसीलिए भयंकर दिक्कत आयी। में किसी तरह ऊपर चला लेकिन जब बर्फ कमर से ऊपर आनी शुरू हो गयी तो वापसी ही करनी पड़ी। बर्फ़बारी बहुत ज्यादा तेज़ हो गयी थी ,ईमानदारी से 50 मीटर दूर तक देख पाना भी मुश्किल हो गया था। इसीलिए मेने वापसी का सोचा क्योकि बर्फ़बारी में कभी नहीं चलना चाहिए , न जाने कब कितनी तेज़ हो जाये। वापसी में सुजान भुजगाली में ढाबे पर ही मिला और दोनों भाई वापसी हो लिए। नीचे पहुँच ही गए थे, देखा की नागेन्द्र भाई गेट पर ही है और बोले की में ऊपर ही आ रहा था। वो नींद भी ले चुके थे और इंतज़ार करके थक चुके थे इसिलए हमे देखने ऊपर आ रहे थे क्योकि हमे लगभग ३ घंटे हो गए थे इतने छोटे से रास्ते में , क्या करते बर्फ ही इतनी भयंकर थी। कुछ नवयुवक भी मिले उन्हें समय के हिसाब से वापसी और दूरी के बारे में बताया क्योकि मुझे ही पता है की रास्ता कैसे बनाया। और अँधेरे में कितना खतनाक होता जाता है जंगल। 
कैमरे, दिमाग और शरीर यही तक स्वस्थ थे, बस 
दोनों भाई ने 3 बजे वापसी शुरू की और बहुत जल्दी दुग्गल बिट्टा तक वापस आ गए। कमाल है जेसीबी वालो ने बनियाकुंड तक बर्फ हटा दी थी। और हम दोनों को अब बिना बर्फ के चलने में बिलकुल भी मज़ा नहीं आ रहा था। दुग्गल बिट्टा से मेने जेसीबी में लिफ्ट ले ली और जेसीबी के आगे वाले पंजे में बेथ कर एक नए जबरदस्त रोमांच का मजा लिया। ये जेसीबी के सफर का रोमांच में ज़िन्दगी भर याद रखूँगा। मज़ा आ गया और यात्रा का पूरा आनंद भी आ गया। जैसे ही में मक्कू बेंड पहुँचा में क्या देखता हु मेरे दोस्त जिनसे कल से बात हो रही थी वो सब मेरे को देख रहे क्योकि जेसीबी में आगे बैठ कर चलना अजीब से हरकत है ,जैसे कोई सॉउथ की फिल्म का हीरो एंटरी लेता है वैसे। यार पहली बार मिला वो भी ऐसे। सब घुमक्कड़ी ग्रुप के लाजवाब व्यवहार वाले इंसान। बहुत सम्मान व् प्यार दिया और ऐसा महसूस नहीं हुआ की में इनसे पहली बार मिल रहा हु। 
वापसी का नज़ारा। . एक जगह जहा रोड से होकर गुजरना पड़ता है 
रात को मक्कू बेंड पर ढाबे पर खाना खाते हुए फैसला हुआ की कल सुबह मक्कू में जल अर्पण कर वापस डेल्ही जाया जायेगा। सो सुबह ठण्ड में 6 बजे नहा कर में तैयार हो गया और दोनों भाइयो संग पहुँच गए मक्कू में जो 7 किलोमीटर है मक्कू बेंड से और यही पर तुंगनाथ जी की पूजा होती है जब तक ऊपर तुंगनाथ जी के मंदिर के कपट बंद होते है। दुलहंडी का दिन और सुबह सुबह महादेव जी को जल अर्पण किया और आरती की इससे अच्छी होली की कल्पना नहीं की थी। फिर गुंजिया का परशाद बाटा और वापस चल दिए हरिद्वार की तरफ।
मक्कू में - ये ही मंदिर में पूजन होता है तुंगनाथ बाबा का शीतकालीन समय में 
बीच में बस व्यासी से 10 किलोमीटर पहले एक ढाबा खुला दिखा और उसी पर दोपहर का कहना खाया नहीं तो ऋषिकेश तक सभी कुछ बंद था। सही 5 बजे मेरठ आ गए और फिर दोनों भाई यहाँ  पर अपने अपने घर। 

उम्मीद है आप सभी को यात्रा वृतांत अचछा लगा होगा।

सावधानी और सुरक्षा सबसे पहले ...... जीवन है तो समय ही समय है

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पहला भाग पढ़ने के लिए :Alive to Explore: यात्रा वृतांत-होली पर चोपता / तुंगनाथ यात्रा ,हौसले और इरादों के साथ प्रकर्ति माता का आशीर्वाद ( भाग-1 )

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11 किलोमीटर का मील पत्थर , राहुल , नागेन्द्र और सुजान सिंह 


चोपता में बीच सड़क बेथ कर गर्म दूध पीने का आनंद लेते हुए
इलाही मेरा जी आये आये 
जेसीबी पर जबरदस्त यात्रा के समापन पर मक्कू बेंड पर 

निर्स्वार्थ अपना पन 
जब शरीर में ताकत न रहे तो आराम करने के बहाने 

4 साल बाद यहाँ बर्फ देखी - 7 किलोमीटर वाला मील  का पत्थर 

दोस्त अनजान कभी नहीं होते 

शुरुवात में ही घुटने टिका दिए बर्फ ने - चोपता से तुंगनाथ जी की तरफ जाते वक़्त 
नज़ारे सुदर ही होते है 

होली के रंग 

 छात्र IIT दिल्ली से काफी मिले 



Wednesday, March 22, 2017

यात्रा वृतांत-होली पर चोपता / तुंगनाथ यात्रा ,हौसले और इरादों के साथ प्रकर्ति माता का आशीर्वाद ( भाग-1 )

          जब आत्म चिंतन करोगे, तभी तो अपने अंदर की कमियों को ढूंढ पाओगे 


होली पर हर वर्ष की तरह, तुंगनाथ महादेव जी अपने दर्शन देने के लिए बुला लेते है। एक या दो यात्रा तो वर्ष में यहाँ की हो ही जाती है ,लेकिन इस वर्ष तीन बार लिखी है ये मेरी अंतर आत्मा कह रही है। केदार बाबा का पूजन या फिर उस धरती पर जाना ही बड़े सौभाग्य की  बात है। होली दहन तो सही परम्परा है लेकिन आज के युग में जो दुल्हैंडी खेलने का तरीका है वो मुझे अच्छा नहीं लगता, इसिलए पिछले पांच वर्षो से में केदार बाबा के पास आ जाता हु। इस साल तो कुछ संयोग ही ऐसा हो रहा है की जब भी यात्रा की तारीख तय करता हु कही न कही से बर्फ़बारी के बादल आ जाते है। इस यात्रा में मेरे साथ नागेन्द्र भाई जुड़ रहे थे और ये लेह होकर आये थे 2008 में और जब इनसे मिलकर ही लेह घूमने की प्रेरणा मिली।  इनके साथ कही घूमने का संयोग पहली बार अब हुआ और ये भी 2008 के बाद कही घूमने नहीं गए, लेकिन सेहत एकदम फिट 6 फीट 2 इंच लंबा इंसान 90 किलो वजन , एक दम शानदार व्यहवार। इनके एक दोस्त राहुल भी इस यात्रा के लिए जुड़ गए और ये भी इनके साथ लेह यात्रा पर गए थे। राहुल भाई ब्राह्मण है और शायद इसीलिए थोड़े गोल मटोल इंसान है ।तुंगनाथ जी पांच केदार में से तीसरे केदार है। ये चंद्रशिला चोटी ( 4000 मीटर समुन्द्र तल से ) के नीचे इनका मंदिर है जो पांडवो द्वारा स्थापित किया गया था जो समुन्द्र तल से 3658 मीटर उचाई पर स्तिथ है। यहाँ हरिद्वार से ऋषिकेश -देवप्रयाग -कर्णप्रयाग-अगस्तमुनि-घाट-ऊखीमठ -चोपता तक सड़क मार्ग से जाया जाता है और  चोपता से लगभग 4 किलोमीटर की पैदल की चढाई है जो लगभग ३-4 घंटे में आराम से पूरी हो जाती है , कुछ इंसान के स्वास्थ पर भी निर्भर करता है की वो कितना स्वस्थ है। यहाँ भी दर्शन/पूजन के लिए  कपाट केदारनाथ धाम के साथ ही खुलते है ( मई में अक्षय त्रित्या के बाद ) और दिवाली के बाद देवउठावनी को बंद हो जाते है। कपाट बंद के समय मक्कू में तुंगनाथ जी का पूजन होता है जो लगभग 19 किलोमीटर है चोपता से। 
मौसम विभाग की चेतावनी

यात्रा पर जाये तो मर्यादा का ध्यान रखे , माँसाहार ,शराब और कोई गलत काम ना करे जिससे वहा की पवित्रता ख़राब हो। नहीं तो प्रकर्ति अपना हिसाब लेना जानती है। 

6 मार्च को मौसम की चेतावनी को देखते हुए भी ये ही फैसला हुआ, कि चलेंगे जो होगा देखा जायेगा। शुक्रवार 10 मार्च की रात दोनों भाई घर आ गए। सही रात को 11:15 बजे हम सब अपना सामान रख चल दिए मेरठ से। आज जल्दी निकल गए तो फैसला ये हुआ की 1-2 घण्टे ऋषिकेश की चौकी पर सो लेंगे क्योकि वो सुबह 4:30 से पहले आगे जाने नहीं जाने देते। हरिद्वार भी 2 बजे आ गए जिससे स्नान करने का कोई मतलब नहीं था। ऋषिकेश में न जाने पुलिस वाले को क्या सूझी और उसने हमें सुबह 3:30 बजे आगे जाने दिया। हम जैसे ही व्यासी ( ऋषिकेश से 35 किलोमीटर ) पहुँचे ,पता नहीं कहा से बादल आये और धमा धम बारिश शुरू देवप्रयाग से पहले और बाद में काफी जगह भूस्लखन की, जिससे वहा बारिश के समय पर बहुत खतरा होता है। और अब तक के जीवन में पहली बार मेरी गाड़ी भी एक बड़े से पत्थर पर से उतरी जिसकी वजह  दो बार हवा में उछली। तेज़ बारिश में नीचे उतारकर ये देखा की कही गाड़ी की तेल की टंकी या चैम्बर तो नहीं फटा। भगवान के आशीर्वाद से सब सही था। बारिश बहुत भयंकर थी और ऐसी बारिश में वो भी अँधेरे में गाड़ी चलाना थोड़ा झोखिम भरा होता है इसीलिए देवप्रयाग पार करने के कुछ किलोमीटर बाद गाड़ी साइड में लगा दी। दिन निकलते निकलते बारिश का भी कम प्रभाव हुआ और दोबारा से चल दिए तुंगनाथ जी की तरफ। 
श्रीनगर के आगे -सुबह का नज़ारा

दोनों भाइयो ने सुबह 7 बजे श्रीनगर में चाय पि, इतने में मेने गाड़ी में डीजल भरवाया और बारिश भी बंद सी हो गयी थी। बारिश से ठंडक काफी बढ़ गयी थी और एक अलग ही खुशबू जो मिटटी से अति है उसकी वजह से सफर और सुहावना हो गया था। घर से आलू के पराठे और जैम नाश्ता  लिए लाया था सो गाड़ी में चलते चलते नाश्ता किया और उम्मीद थी की 11 बजे से पहले ही चोपता तक पहुँच जायेंगे अगर रोड खुली मिली क्योकि परसो ये बताया था की बनिया कुंड (जो की 4 किलोमीटर पहले है चोपता से) तक सड़क पर बर्फ थी और आज रात की बारिश से साफ पता था की बर्फ काफी नीचे तक गिरी होगी। इस दौरान में अपने कुछ करीबी मित्रो से संपर्क में था जो अपने बड़े सारे ग्रुप के साथ तुंगनाथ जी के दर्शन के लिए आ रहे थे। हम ने रुद्रप्रयाग पर किया और समझ गए की आगे क्या हालात होगी क्योकि हर तरफ बादल ही बादल थे। ऊखीमठ को जैसे ही पार किया आँखे खुली की खुली रह गयी हर तरफ जंगल में बर्फ ही बर्फ और बादल सड़क पर। ऐसा नज़ारा पहले कभी नहीं देखा। 13 बार पहले भी बुलाया यहाँ बाबा ने लेकिन इतनी गजब की बर्फ़बारी नहीं देखी। सन 2013 में बनियाकुण्ड पर सड़क पर ही टेंट लगा कर कैंपिंग की थी क्योकि उस साल भी जबरदस्त बर्फ़बारी के कारण रोड बंद हो गयी थी। 
बनिया कुण्ड पर 2013 में सड़क किनारे कैंपिंग करते हुए -रोड बंद

खैर इस बार तो मामला अलग ही था और में समझ गया की तुंगनाथ जी तो जा ही नहीं पाएंगे। मक्कू बेंड से चोपता 12 किलोमीटर है और मक्कू बेंड से 3 किलोमीटर पहले ताला गाँव का शहिद द्वार आता है वहा तक बर्फ थी। ताला गाँव से मेने सुजान( तुंगनाथ जी परिसर में इसका होटल है ) को फ़ोन किया और सुजान को उनके घर से ले आये और वापस मक्कू बेंड की तरफ चल दिए। एक किलोमीटर चलते ही बर्फ ही बर्फ रोड पर खतरनाक हो गया चलना , कुछ सौ मीटर आगे ही दो गाड़ी खड़ी थी और टूरिस्ट हाथ हिला कर इशारा करने लगे की आगे जाने की जगह नहीं। किसी तरह उनकी गाड़ी एक तरफ लगायी और आगे बढ़ा। हिम्मत  गाड़ी ने भी और  किलोमीटर के पास  चली। फिर बीच रोड में फस गयी। अब क्या करे ऊपर से वापस से बर्फ़बारी शुरू। हमारे पीछे पीछे लोकल टैक्सी वाली जीप और दो गाड़ी वाले भी आ गए। फैसला हुआ की जेसीबी वाले को बुलाया जाए और फिर मक्कू बेंड पर गाड़ी कड़ी कर दी जाये। तक़रीबन एक घंटे के बाद जब जेसीबी वाला नहीं आया तो मेने कार की डिग्गी से रस्सी निकाली और टायर पर चढाई जिससे में गाड़ी साइड में लगाऊ और पैदल ही जा सकु मक्कू बेंड पर क्योकि यहाँ रुकने का कोई सवाल ही नहीं। रस्सी लगायी लेकिन 10 सेकंड में ही जल कर टूट गयी। इतनी जबरदस्त ग्रशण को बर्दाश्त नहीं कर पायी। खैर जैसे तैसे दूसरे ड्राइवर की मदद से धक्का लगा कर गाड़ी साइड लगा दी जिससे कोई बड़ा वाहन भी आराम से निकल जाये। 
शाम को बर्फ़बारी में गाड़ी के टायर से टूटी हुई रस्सी उतारते हुए

सुजान को मक्कू बेंड पर महावीर होटल वाले के पास कमरे खुलवाने और खाना तैयार करवाने के लिए भेज दिया। हम भी अपना सामान और स्लीपिंग बैग साथ लेकर पैदल पैदल चल दिए मक्कू बेंड की तरफ, बर्फ भरी रोड पर। शाम होते होते जेसीबी वाले ने मक्कू बेंड तक रोड खोल दी और शाम को 5 बजे मेने भी अपनी गाड़ी मक्कू बेंड पर ला कर खड़ी कर दी। दोस्तों से पहली बार मिलने का काफी उत्साह था लेकिन फ़ोन का नेटवर्क काफी परेशान कर रहा था , फिर भी बीएसएनएल काफी ठीक नेटवर्क है घाटी में, शायद दोस्तों के पास नहीं था इसीलिए शाम से संपर्क नहीं हो पाया और वो भी बर्फ़बारी की जानकारी के बाद पीछे रास्ते में ही कही रुक गए। 
मुझे क्या पता था की अगले दिन किसी और जेसीबी पर ऐसे सफर करने का रोमांच मिलेगा

अब रात का खाना खाने के बाद केवल ये ही बात तय हुई की राहुल भाई जहा तक चल सकेगा वहा तक चलेंगे और हम बनियाकुण्ड के आगे तक जहा तक जा सकेंगे, वहा तक जायेंगे। सुजान ने हमेशा की तरह लकड़ी इक्खटी की और आग सेकने के लिए तीनो की कुर्सी लगा दी। आग सेकते-सेकते वापस से बर्फ़बारी शुरू हो गयी और हमने भी सामने खड़ी गाड़ी पर अपना तापमान नापने का यंत्र रख दिया , की सुबह देखेंगे की क्या हिसाब रहा। 
बर्फ़बारी का शुरूवाती दौर

कल की बर्फ की परेशानी से पूरी तरह परिचित होते हुए भी दिल को सकूँ था की इतना शानदार नज़ारा बहुत कम देखने को मिलते है। यहाँ तक भी आये ख़ुशी है, दुल्हेंडी के दिन मक्कू ( शीतकालीन समय में गद्दी स्थल - जब ऊपर कपाट बंद होते है तो मक्कू में तुंगनाथ बाबा का यही पूजन होता है ) में जल अर्पण कर वापस जायेंगे, हमेशा की तरह। 

और फिर से इस रात  मुझे खराटे की चुनोतियो का सामना करना पड़ा। दोनों की विडियो रिकॉर्ड करके सुबह दिखाई की किस कदर रात भर खर्राटे लेते रहे और में जगता रहा। 

होली के दिन शानदार ,प्राचीन (पांडव द्वारा बनाया रास्ते ) रास्ते से कैसे चोपता और कुछ किलोमीटर तुंगनाथ जी तक कमर/घुटनो बर्फ में रास्ता बनाते हुए यात्रा की। 

उम्मीद है आप सभी को यात्रा वृतांत अचछा लगा होगा।

सावधानी और सुरक्षा सबसे पहले ...... जीवन है तो समय ही समय है

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                                  कुछ फोटो यात्रा वर्णन के दौरान से  


इस बार कुछ नया सीखा राहुल और नागेन्द्र भाई से  -- शानदार फोटो मक्कू बेंड 


शानदार पल मक्कू बेंड से 

बर्फानी शॉट -- उड़ती हुई बर्फ 
जादुई लाल टॉर्च - फोटो में इसको इस्तेमाल किया 


सुबह मक्कू बेंड का नज़ारा -- यहाँ से चढाई शुरू की होली के दिन --रोड पर ३-४ फुट तक बर्फ थी 

इंतज़ार करते हुए जेसीबी का --बर्फ हटाने के लिए 

सुबह कुछ ऐसा मिला तापमान यंत्र और गाड़ी की छत 

राहुल ने लिया ये फोटो 

आईफोन 7 + में कैमरा क्वालिटी सबसे अलग है 

रहोडोडेनड्रोन फूल - उत्तराखंड का राज्य फूल --पूरी घाटी भरी हुई थी 


दुलहंडी वाले दिन -- में , नागेन्द्र भाई और राहुल भाई --और पीछे शानदार श्रृंखला साथ में चौखम्बा          
जब तैयारी सही हो तो आप ज्यादा परेशां नहीं होते -- गूगल देवता की जय 

Thursday, March 16, 2017

भगवान गणेश जी का जन्म स्थल डोडीताल यात्रा वृतांत और तेंदुए का डर ( भाग-2 )

              जो चाहा वो मिल जाना सफलता है, जो मिला उसको चाहना प्रसन्ता है

डोडीताल में माँ के मंदिर के आंगन में सोने का सोभाग्य मिलना इस बात को बताता है की कृपा है माँ की और गणेश जी की। जो होता है अच्छा ही होता है। रात को खाना खाते वक़्त काफी तेज़ आवाज़ आयी थी उसका डर जरूर था क्योकि में जानता हु की जंगली जानवर कितने ज्यादा खतरनाक होते है अपने इलाके को लेकर। बेयर ग्रील्स ने डिस्कवरी चैनल पर इतना तो सिखाया ही है। रात को ठण्ड का अभ्यास 8 बजे ही हो गया था, इसीलिए मंदिर के आंगन में जो खिड़किया थी उनको अच्छे से बंद किया , जितनी भी हो सकी। एक सकुन था की आंगन का फर्श लकड़ी का था जिससे ठण्ड और गर्मी का प्रभाव कम होता है। 

यात्रा पर जाये तो मर्यादा का ध्यान रखे , माँसाहार ,शराब और कोई गलत काम ना करे जिससे वहा की पवित्रता ख़राब हो। नहीं तो प्रकर्ति अपना हिसाब लेना जानती है। 

फर्श पर मैट बिछाया और अपनी गरम चादर और स्लीपिंग बैग का फ्लीस ( गरम कपडा अंदर होता है जो और ज्यादा गरम रखता है ) नरेंद्र को दे दिया जिससे दोनों को ज्यादा तकलीफ ना हो । पराठे और जैम से दोनों भाई का पेट भर गया था और 10 पराठे सुबह  रख लिए जिससे सुबह हम दोनों और कुत्ते को भी खिला सके क्योकि अपने से पहले साथ वाले को खिलाना चाहिए चाहे वो कोई भी और कैसा भी हो। रात को नींद तो नहीं आयी ठण्ड के कारण और उस सर-सराहट के कारण भी। जैसे तैसे सुबह हुई और 6:30 बजे हम दोनों ने सामान को बैग में रख पहले उस आवाज़  का निरक्षण करने निकल लिए। सुबह की ठण्ड हड्डी में  रही थी। ऊपर से जुते गीले थे और बर्फ से होकर उस घंटना स्थल को ढूंढना ,सही में हौसला चाहिए। 
सुबह का नज़ारा 
दोनों ने झील के चक्कर लगाते हुए जंगल में ढूंढना शुरू किया और कभी रास्ते पर ढूंढते तभी एक दम से नरेंद्र बोला भाई जी खून। में भी थोड़ा हैरान हुआ और देखा की किसी जानवर का खून और बाल थे रास्ते पर ,मुश्किल से 50 मीटर ही होगा मंदिर से। मतलब समझते देर ना लगी की रात को शिकार हुआ है यहाँ और वो आवाज़ इस बेचारे जानवर की आखरी आवाज़ थी। अब मेरे कान तो आवाज़ नरेंद्र की सुन रहे थे लेकिन में केवल जंगल में देख रहा था की कही तेंदुए भाई हमे ही देख रहे हो और पलक झपकते ही नाश्ते की तैयारी शुरू कर दे। भाड़ में गयी सब बात जल्दी से 10 सेकंड की विडियो रिकॉर्ड की और भाग लिए वापस मंदिर की तरफ क्योकि उस तेंदुए का पेट भरा हुआ है लेकिन कोई और भी तो भूका हो सकता है। 
सुबह ६:३० बजे -.0 2 डिग्री 
तेज़ आये और सही 6:50 पर बैग लेकर चल दिए। बहुत ही ज्यादा शानदार नज़ारा था सुबह सूर्य उदय का दायरा टॉप पर बादल और सूरज की किरणे अलग ही शानदार नज़ारे दे रही थी।
सुबह का शानदार नज़ारा 
सही 8:50 पर धारकोट पुहँच कर पराठे निकाले और तीनो ने  नाश्ता किया। अब कुछ बेर और संतरे का स्वाद भी लिया क्योकि ये आपातकाल के लिए रखे थे लेकिन अब कुछ ऐसा नहीं होने वाला था तो क्यों वजन बढ़ाया जाये। तक़रीबन 15 मिनट में कुछ फोटो और विडियो लेने के बाद यहाँ से चले और छतरी से खड़ा शॉर्टकट ले लिए नीचे की और क्योकि अब सास नहीं फूलने वाली थी। लगभग 1 घंटे 20 मिनट में धारकोट से अगोडा आ गए और यहाँ से नरेंद्र और मेरी राहे अलग हुई अभी के लिए ,और मनु का घर रोड पर होने के कारण उसने मेरे को आते हुए देख लिया और गांव के गेट पर मेरा इंतज़ार करने लगा। उसका कोई परिचित नीचे संगम चट्टी पर आ रहे थे तो उनसे मिलने उसे जाना था और इसीलिए वो भी साथ हो लिया। कमाल की बात ये है की मेने सही दो घंटे पैतीस ( 2:35 )मिनट में ये 22 किलोमीटर का सफर कर लिया।
धारकोट से दयारा बुग्याल सामने 
जैसे ही में नीचे आया वहा पर ढाबे वाले संग एक भाई और थे जो काफी हैरान हुए मेरी गति को देख क्योकि में 11:25 पर नीचे आ गया और इसका मतलब था की में काफी स्वस्थ हु अभी और ऊपर से कंधे पर ठीक ठाक वजन था। खैर एक छोटे से आराम के बाद यहाँ से 11:55 पर वापस मुनेरि बांध की तरफ चल दिया क्योकि गंगा जल लेना था। अब में मुनेरि बांध के आगे सैन्झ से पहले एक जगह है जहा पर काफी सारे सरकारी ट्रक खड़े होते है और नीचे से रेत /रोड़ी का काम करते है। वही से में नीचे नदी के पास गाड़ी उतारकर स्नान करकर गंगा जल लेता था लेकिन इस बार उस रास्ते पर तार लगा दिए जिससे नीचे कोई गाड़ी न जा सके। उस रास्ते के सामने एक दुकान भी है मेने उनसे पूछा तो बताया वापस 200 मीटर बाद रास्ता है लेकिन वो ट्रक वाले इस्तेमाल करते है और काफी खड़ी चढ़ाई है। भाई और कोई रास्ता न था इसीलिए अपना डिजायर गाड़ी को पुचकार के नीचे उत्तर दिया क्योकि स्कार्पियो या क्ष यू वी तो नहीं थी की ताकतवर है लेकिन इसने भी कभी धोका नहीं दिया।
सभी की  लिए बोर्ड 
कमाल है, ऊपर से जल मिटटी भरा था इसका मतलब था की ऊपर बारिश हो रही थी और यहाँ गर्मी में हालात ख़राब थी। खैर किसी तरह किनारे पर नाहा कर जल भरा कनियो में और चला वापिस कार की तरफ। धीरे धीरे गंगा जल कार में रखने के बाद वापस चल दिया। दूसरी बारी में बहुत जोर लगाने के बाद जैसे तैसे ऊपर सड़क तक गाड़ी आ गयी। लगभग 1 बजे मेरठ की तरफ चल दिया । रास्ते में के एक भाई से मुलाकात होनी थी क्योकि जब भी वो फेसबुक पर वो मेरे फोटो देखते तो बोलते की बिना मिले चले गए। लेकिन संयोग वश मेने जब फ़ोन किया इस बार तो पता लगा की वो भी रास्ते में ही है कही ,लेकिन मुलाकात न हो पायी। खैर दिन का पहले खाना कालियासोड़ में खाया और हमेशा की तरह मिर्च बहुत ज्यादा लगी क्योकि में बिलकुल भी मिर्च नहीं खाता ।
यहाँ से जल लिया 
शाम 7 बजे ऋषिकेश आ गया और उसके बाद जो हालात ख़राब की ट्रैफिक ने हर तरफ जाम ही जाम, मन नहीं किया घर जाने का और में हरिद्वार/कनखल में गुरुदेव जी के नीलखण्ठ आश्रम पर ही रुक गया और अगले दिन सुबह को आराम से नाश्ता करके, फिर घर पर गया।
कनखल में  आश्रम  फोटो 
उम्मीद है आप सभी को यात्रा वृतांत अचछा लगा होगा।

सावधानी और सुरक्षा सबसे पहले ...... जीवन है तो समय ही समय है

Youtube channel link: Vikas Malik – YouTube

पहला भाग पढ़ने के लिए :Alive to Explore: भगवान गणेश जी का जन्म स्थल डोडीताल यात्रा वृतांत और तेंदुए का डर ( भाग-1 )

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क्या दिल के आकर का पत्थर दिखा झील में 

एक एंगल ये भी मंदिर संग
रास्ते में सुन्दर नज़ारा 



कही कही थोड़ी बर्फ थी इस साल 

कैमरा के लिए अगोडा के बाद 

उत्तरकाशी के बाद संगम चट्टी से पहले 

कभी इस टंकी में पानी आता था -धारकोट के बाद 


नेलांग घाटी (तिब्बत जाने का प्राचीन रास्ता और उत्तरकाशी में जानने वाले टूर ऑपरेटरो की लूट) की जगह दयारा बुग्याल की यात्रा (भाग-1)

जब आपके साथ कोई यात्रा करता है तो उसकी सुरक्षा की  जिम्मेदारी आपकी होती है , किसी को छोड़ कर मत भागिए  ग्रतंग गली -नेलांग घाटी, फोटो सौजन...